तरबूज की खेती के लिए सही तरीके


1. जलवायु और मिट्टी का चुनाव

  • जलवायु: तरबूज गर्म जलवायु वाली फसल है और इसके लिए 25-40°C तापमान उपयुक्त होता है।
  • मिट्टी: अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। मिट्टी का pH 6.0-7.5 होना चाहिए।

2. भूमि की तैयारी

  • खेत को 2-3 बार अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बना लें।
  • अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट डालें (10-15 टन/एकड़)।
  • जैविक खाद के साथ नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (NPK) का संतुलित उपयोग करें।

3. बीज चयन और बुवाई का तरीका

  • प्रजाति का चयन: क्षेत्र और जलवायु के अनुसार हाईब्रिड या देसी प्रजाति का चुनाव करें (जैसे कि अरीया, मधुबाला, शुगर बेबी आदि)।
  • बीज की मात्रा: प्रति एकड़ 1-1.5 किग्रा बीज पर्याप्त होता है।
  • बुवाई का समय:
  • गर्मी की फसल: फरवरी-मार्च
  • वर्षा ऋतु की फसल: जून-जुलाई
  • शरद ऋतु की फसल: नवंबर-दिसंबर
  • बुवाई का तरीका:
  • कतारों के बीच 5-6 फीट की दूरी रखें और पौधों के बीच 1-1.5 फीट की दूरी रखें।
  • बीज को 1-2 इंच गहराई में बोएं।
  • बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक (थिरम या कार्बेन्डाजिम) से उपचारित करें।

4. सिंचाई प्रबंधन

  • पहला पानी बुवाई के तुरंत बाद दें।
  • गर्मियों में हर 5-6 दिन और ठंडे मौसम में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
  • टपक (ड्रिप) सिंचाई पद्धति से पानी की बचत होती है और उपज बढ़ती है।

5. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

  • गोबर खाद या वर्मीकंपोस्ट: 10-15 टन प्रति एकड़।
  • नाइट्रोजन (N): 40-60 किग्रा/एकड़
  • फॉस्फोरस (P): 30-40 किग्रा/एकड़
  • पोटाश (K): 20-30 किग्रा/एकड़
  • उर्वरकों को 3 बार में दें – बुवाई के समय, फूल आने से पहले और फल बनने के समय।

6. खरपतवार नियंत्रण

  • निराई-गुड़ाई करके खरपतवार हटाएं।
  • प्लास्टिक मल्चिंग (Mulching) का उपयोग करने से नमी बनी रहती है और खरपतवार नियंत्रित होते हैं।

7. कीट एवं रोग नियंत्रण

  • लाल मकड़ी, थ्रिप्स और फल मक्खी को रोकने के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशक का उपयोग करें।
  • फ्यूजेरियम विल्ट, डाउनी मिल्ड्यू, पाउडरी मिल्ड्यू जैसी बीमारियों से बचाव के लिए फफूंदनाशक (क्लोरोथालोनिल या कार्बेन्डाजिम) का छिड़काव करें।

8. परागण और फसल कटाई

  • मधुमक्खियों की गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए खेत में फूलों के पौधे लगाएं, ताकि प्राकृतिक परागण बेहतर हो।
  • बुवाई के 75-90 दिनों के बाद फल तैयार हो जाता है।
  • पका हुआ तरबूज हल्का पीला हो जाता है और उस पर थपकी देने पर खोखली आवाज आती है।

9. उत्पादन और बाजार

  • औसत उपज 15-30 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।
  • तरबूज को कटाई के बाद छायादार स्थान पर रखें और बाजार तक सही तरीके से पहुँचाएं।

निष्कर्ष:
अगर सही विधियों का पालन किया जाए तो तरबूज की खेती से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उन्नत तकनीकों जैसे मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई और जैविक उर्वरकों का उपयोग करने से उत्पादन में वृद्धि होगी।

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