मटर की खेती की पूरी जानकारी
मटर (Pea) एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसे सब्जी और दाल दोनों रूपों में उपयोग किया जाता है। यह ठंडे मौसम में अच्छी पैदावार देती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होती है।
1. जलवायु और भूमि चयन
- मटर ठंडे और शीतोष्ण जलवायु में अच्छी तरह बढ़ता है।
- 10-25°C तापमान इसके लिए आदर्श होता है।
- अधिक गर्मी से फूल और फल गिर सकते हैं।
- अच्छी जल निकासी वाली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- pH मान 6.0-7.5 होना चाहिए।
2. उन्नत किस्में
(A) हरी मटर (सब्जी हेतु) की किस्में
- आज़ाद पी-1
- अर्का किरण
- पंत मटर-5
- जवाहर मटर-4
- केएस-150
(B) दाने वाली (दाल हेतु) किस्में
- पंत पी-42
- एच.यू.पी. 2
- आई.पी.एफ.टी. 8
- रचना
3. बुवाई का समय
मौसम | बुवाई का समय |
---|---|
रबी (सर्दी) | अक्टूबर-नवंबर (मैदानी क्षेत्र) |
पहाड़ी क्षेत्र | मार्च-अप्रैल |
4. बीज की मात्रा और बुवाई विधि
- बीज दर: 40-50 किग्रा प्रति हेक्टेयर (छोटी दाने वाली किस्मों के लिए) और 75-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर (बड़ी दाने वाली किस्मों के लिए)।
- कतार से कतार की दूरी: 30-45 सेमी
- पौधे से पौधे की दूरी: 5-10 सेमी
- बीज की गहराई: 4-5 सेमी
- बुवाई से पहले बीज को राइजोबियम और ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।
5. खेत की तैयारी और खाद-उर्वरक प्रबंधन
- खेत की 2-3 बार जुताई करें और पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी बनाएं।
- जैविक खाद: प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर की खाद डालें।
- रासायनिक उर्वरक:
- नाइट्रोजन (20 कि.ग्रा./हेक्टेयर)
- फॉस्फोरस (40 कि.ग्रा./हेक्टेयर)
- पोटाश (30 कि.ग्रा./हेक्टेयर)
- नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और आधी 30 दिन बाद दें।
6. सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
- हल्की नमी बनाए रखें, अधिक पानी देने से फसल खराब हो सकती है।
- पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें।
- दूसरी सिंचाई फूल आने के समय करें।
- खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन बाद और दूसरी 40 दिन बाद करें।
- पेन्डीमेथालिन (750 मिली/हेक्टेयर) खरपतवारनाशी का उपयोग करें।
7. प्रमुख कीट और रोग नियंत्रण
कीट:
- फली छेदक कीट:
- स्पिनोसैड का छिड़काव करें।
- थ्रिप्स और एफिड:
- नीम तेल (5%) का छिड़काव करें।
रोग:
- पाउडरी मिल्ड्यू (सफेद फफूंदी):
- सल्फर पाउडर का छिड़काव करें।
- जड़ गलन रोग:
- बीजोपचार करें और जल निकासी सही रखें।
8. कटाई और उपज
- हरी मटर की फसल 60-90 दिन में तैयार हो जाती है।
- जब फलियां हरी और मोटी हो जाएं, तब तुड़ाई करें।
- दाने वाली मटर की कटाई 100-120 दिन में करें, जब फलियां सूखने लगें।
- औसत उपज 15-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
9. विपणन और भंडारण
- हरी मटर को ताजगी बनाए रखने के लिए ठंडी जगह पर रखें।
- दाने वाली मटर को सूखाकर मंडी में बेचा जा सकता है।
- प्रोसेसिंग (मटर पाउडर, फ्रोजन मटर) के लिए भी उपयोगी है।
10. जैविक खेती के लिए सुझाव
- रासायनिक खाद की जगह वर्मी कम्पोस्ट, नीम खली, और जैविक खाद का उपयोग करें।
- कीटनाशकों की जगह नीम तेल, ट्राइकोडर्मा, और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
- ड्रिप सिंचाई अपनाकर पानी की बचत करें।
निष्कर्ष
मटर की खेती कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली फसल है। सही तकनीकों और उन्नत किस्मों का उपयोग करके किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है।
क्या आप हरी मटर उगाना चाहेंगे या दाने वाली मटर की खेती में रुचि रखते हैं?